सोमवार, 7 सितंबर 2009

ना जाने

ना जाने कौन सा था वो पल,
जिस पल में तुम गये थे,
रौशनी से रोशन कर राहें मेरी,
अंधेरों में मुझे धकेल गये थे,
ना जाने कौन सा था वो पल,
जिस पल में तुम गम हो गये थे........
अब तो सहर भी शब से है भारी,
अब तो हर पल रहती है बेकरारी,
ना जाने कौन सा था वो लम्हा,
जिस पल में तुम चले गये थे....
खुले आँखे बोझिल पलकें,
रुत भी अब ग़मगीन है,
ना जाने कैसी थी वो रुत,
जिस रुत में गुमशुदा हो गये थे,
ना जाने......................

मैं लड़की और वो लड़का है

नयन अलग नहीं, रूप एक सा है,
सृजन है दोनों प्रकृति के,
अंतर क्या मैं लड़की और वो लड़का है,
मैं निरक्षर क्यूँ और वो पढता है,
अंतर क्या..........
बचपन साथ गुजरता, इक खून का रिश्ता बनता है,
आधार है दोनों इस जहां के,
जगत जननी के साथ ये दुर्व्यवहार क्यूँ है,
अंतर क्या....
नींव कमजोर हो गर तो शीर्ष कमजोर है,
जड़े गहरी है हमारी, हमें आगाज़ दो
निरक्षरता का अँधेरा भयावह है,
हमें ज्ञान का प्रकाश दो,
ग़लतफ़हमी है ये की,
मैं लड़की और वो लड़का है......

आँसू की बूंदे

पग पग पर बिखरी आँसू की बूंदे,
तेजाब बन जलायेगी हमें,
गर अनदेखा किया इन्हें,
कही सुकून ना लेने देंगी हमें,
उन्मुक्त वातावरण की बुलबुल,
ना गा सकेगी कैद में,
फिर कहाँ सुमधुर संगीत सुनाएगी हमें,
पग पग पर बिखरी.....
अकेलेपन का अहसास दिलायेंगी हमे,
जहन्नुम की ज्वाला बन जलायेगी हमें,
हरियाली बिन उजाड़ उपवन,
नारी बिन सूना है ये जग,
जब वो ना रहेंगे इस दुनिया में,
पग पग पर बिखरी.....
इक स्मृति बन रुलायेंगी हमें,
तेजाब बन जलायेगी हमें,
पग पग पर बिखरी.....

रविवार, 6 सितंबर 2009

तोहर गईया

बाबा तोहरे दुआरिये पे रहत रहुए एगो गईया रे,
कवन खूंटा बाँध दिहनी बाबा आपन गईया के,
बाबा तोहरे दुआरिये.....
गईया मांगले का बस दू गो रोटी,
अउर छोट मांगले से झोपड़ी,
ठौर ठिकाना दिहनी बाबा एगो कसईया के,
बाबा तोहरे दुआरिये.....
मंगनी बाबा बस तहार आसरा,
बच्च्वे से मिलल न माई के अंचरा,
बाबा जी ई का कईनी भेज देहनी बजरिया में.
बाबा तोहरे दुआरिये.....
अंसुओ ना निकले आँखवा सुजाइल बा,
सिसकी बंद बा करेजा में तीरवा बेधाइल बा,
बाबा जी कवन गलती कईलख गईय्या हो,
तकदीर में लिख देहल संग कसईया के,
बाबा तोहरे दुआरिये पे रहत रहुए एगो गईया रे,
कवन खूंटा बाँध दिहनी बाबा आपन गईया के..........

तोहर गईया

बाबा तोहरे दुआरिये पे रहत रहुए एगो गईया रे,
कवन खूंटा बाँध दिहनी बाबा आपन गईया के,
बाबा तोहरे दुआरिये.....
गईया मांगले का बस दू गो रोटी,
अउर छोट मांगले से झोपड़ी,
ठौर ठिकाना दिहनी बाबा एगो कसईया के,
बाबा तोहरे दुआरिये.....
मंगनी बाबा बस तहार आसरा,
बच्च्वे से मिलल न माई के अंचरा,
बाबा जी ई का कईनी भेज देहनी बजरिया में.
बाबा तोहरे दुआरिये.....
अंसुओ ना निकले आँखवा सुजाइल बा,
सिसकी बंद बा करेजा में तीरवा बेधाइल बा,
बाबा जी कवन गलती कईलख गईय्या हो,
तकदीर में लिख देहल संग कसईया के,
बाबा तोहरे दुआरिये पे रहत रहुए एगो गईया रे,
कवन खूंटा बाँध दिहनी बाबा आपन गईया के..........

गुरुवार, 3 सितंबर 2009

कभी फुर्सत मिले

कभी फुर्सत मिले तो सोचना वो कौन था,
देकर तुम्हे जहां जाने कहाँ गया,
कभी फुर्सत मिले तो सोचना
तेरे आंसू जिसे चुभते थे नश्तर की तरह,
कभी पल मिले तो सोचना...
तेरी इक आहट उसकी चैन बन जाती थी,
कभी फुर्सत मिले तो सोचना..
बन के तेरा हमनवां रहता था तेरे आस पास.
कभी फुर्सत मिले तो सोचना,
क्या था वो,
जो बन कर दोस्त तुम्हारा, न बन सका जो,
कभी फुर्सत मिले तो सोचना,
कौन था वो,
जो साया बना तुम्हारा, न बन सका जो,
कभी फुर्सत मिले तो सोचना,
कैसा था वो,
जो तुम्हे याद कर के भी, न बस सका याद जो,
कभी फुर्सत मिले तो सोचना,
क्या चाहता था वो,
जो तेरा इंतजार करता, तेरे रस्ते पे, न बन सका तेरा जो,
कभी फुर्सत मिले तो सोचना.........

मैं नारी हूँ.

सदियों से सताई गई, जलाई गई, अग्नि परीक्षा देती,
मैं शकुन्तला, मैं सती, मैं ही सीता हूँ,
मैं नारी हूँ...
मैं जगत जननी हूँ, मैं विनाशनी हूँ,
मैं अर्धनारीश्वर की सहभागिनी हूँ,
मैं नारी हूँ....
अहिल्या की पवित्रता मैं, उमराव की पतिता मैं,
गंगा की निर्मल धारा मैं, काली की ज्वाला मैं ही हूँ,
मैं नारी हूँ......
पुरुष के ह्रदय का वात्सल्य मैं, पुरुष का अहम् मैं,
पुरुष के पुरुषत्व की पहचान मैं ही हूँ,
मैं नारी हूँ...
ब्रह्म की दुलारी मैं, विष्णु की प्यारी मैं,
परम शिव की अखंड शक्ति मैं ही हूँ,
मैं नारी हूँ...
माँ की ममता मैं, रिश्तों का अपनत्व मैं,
एक प्रेमी का प्रेम मैं ही हूँ,
मैं नारी हूँ...
सतयुग की शकुन्तला मैं, त्रेता की सीता मैं,
द्वापर की द्रौपदी मैं, कलयुग की कल्पना मैं ही हूँ,
मैं नारी हूँ....
सौन्दर्य की देवी मैं, प्रेम का प्रतीक मैं,
ज्ञान का अकूत भण्डार मैं, सर्व ह्रदय में बसी स्नेह मैं ही हूँ,
मैं नारी हूँ...
प्रेम में डूबी वैरागन मीरा मैं, विरह में तड़पती अभागन राधा मैं,
पंच वीरों की वीरता की पहचान पांचाली मैं ही हूँ,
मैं नारी हूँ...
मंदिरों में पूजी जाती देवी मैं, पैरों की ठोकर खाती दासी मैं,
सर्वत्र व्याप्त इस सृष्टि की अद्भुत सृजन मैं ही हूँ,
मैं नारी हूँ...
बीत गये जमाने, वो पल, गुजर गया इतिहास,
मैं रजिया सुल्ताना, मैं झांसी की रानी,
कवियों की कल्पना मैं ही हूँ,
मैं नारी हूँ......