सोमवार, 7 सितंबर 2009

ना जाने

ना जाने कौन सा था वो पल,
जिस पल में तुम गये थे,
रौशनी से रोशन कर राहें मेरी,
अंधेरों में मुझे धकेल गये थे,
ना जाने कौन सा था वो पल,
जिस पल में तुम गम हो गये थे........
अब तो सहर भी शब से है भारी,
अब तो हर पल रहती है बेकरारी,
ना जाने कौन सा था वो लम्हा,
जिस पल में तुम चले गये थे....
खुले आँखे बोझिल पलकें,
रुत भी अब ग़मगीन है,
ना जाने कैसी थी वो रुत,
जिस रुत में गुमशुदा हो गये थे,
ना जाने......................

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