शनिवार, 20 जून 2009

भँवरा

"वो कलियों को यौवन प्रदान करते है,
जाने क्यों लोग भंवरों को बदनाम करते है ll
फूलों में सौन्दर्य की ढलान होती है,
वो अहदे शबाब को सलाम करते है,
जाने क्यों लोग भंवरों को बदनाम करते है ll
वो पुष्प के सौन्दर्य को अलविदा कहते है,
वो काँटों से बेइंतहा प्यार भी करते है,
जाने क्यों लोग भंवरों को बदनाम करते है ll
वो कलियों की इन्द्रधनुषी छटा का आभास भी कराते है,
वो कलियों की सौन्दर्यता का बखान भी करते है,
जाने क्यों लोग भंवरों को बदनाम करते है ll
श्याम तन ये सोंचकर कली को प्यार करते है,
श्याम तन ही सही, कली को यौवन की बहार देते है,
जाने क्यों लोग भंवरों को बदनाम करते है ll
अनछुई नादान कली का रूप जगत में इस्त्काल करते है,
जाने क्यों लोग भंवरों को बदनाम करते है ll"
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वो एक परी जैसी

अपनी तरफ़ से........
"काश वो सुहानी चाँदनी रात फिर लौट आती,
काश उसका दरश मेरी इन आंखों में रहता,
काश मैं उसके क़दमों में अपना सिर झुकता,
काश मैं ताउम्र उसका साथ पाता,
काश मैं अपलक उसे निहार पाता,
काश उसके हाथों में हाथ रखकर कुछ मांग पाता"
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अपनी तरफ आते हुए मैंने उसे देखा l बड़ी मासूम, अत्यन्त सुंदर, बिल्कुल बेदाग़ चाँद की तरह, सितारों का आँचल ओढे दाहिने हाथ में पारिजात लिए, माथे पर कुमकुम की जगह मानो सूरज ने ले ली हो, इन्द्रधनुष के समान भौहे, पलक मानो शुकदेव की, आँखे मानो छैतिज रखे हुए श्वेत पदम के पंखुडी के ठीक बीचो बीच एक श्याम तन बैठा हो, गाल मानों उषाकाल का आकाश नवीनतम कोंपलों की भांति पतले एवं शशक के चमकीले लाल आँख की लालिमा लिए हुए होंठ से फैलती मुस्कराहट के बाद गुलाब के बीच का गाडापन मानों उसके गालों पर उतर आया हो, ग्रीवा मरार की भांति और उसके तारकमणि से सुसज्जित हार उसकी शोभा बढ़ा रही हो, वक्षस्थल पर कसाव से परिपूर्ण उभर लिए हुए उरोजों की थिरकन मानों दो समानांतर बयाँ चिडियों के घोसलों पर मंद मंद समीर के झोंकों का प्रभाव हो रहा हो, बाहें मानों चंदन के शाखाओं ने लता का रूप ले लिया हो, उदरप्रदेश में स्थित नाभि मानों केसर मिश्रित दुग्ध सरोवर में छोटा सा भंवर, कमर नागिन की लचक लिए हुए पैरों के चाप से सहस्त्रों झींगुरों की आवाज लिए सर से पांव तक उसका श्रृंगार करने में कुबेर के खजानें को खाली कर दिया गया हो, स्वंय महालक्ष्मी ने उसे सजाया हों, सुदूर स्थित धुंध को भेदती हुई वह अतिरमणी मेरे सम्मुख आ रुकी और मैं उसे अपलक देखता रहा l देखते ही देखते निशा का पथिक शशि एक छितिज से दुसरे छितिज का सफर तय कर चुका था l बिहग नीड़ छोड़ने ही वाले थे, कलरव मचने ही वाली थी, उषाकाल की किरणें धरा पर बिखरने ही वाली थी कि अचानक उसने प्रजापति के सुनहले पंखों की भांति अपने पंखों को फैला कर मुझे आश्चर्यचकित कर दिया l सुदूर जाते हुए बिदु मात्र बिम्ब को मैं भींगे पलकों से अपलक देखते रह गया l वो दुबारा नही आई मगर उसकी छवि आज भी धुंधली नही हुई l
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"देखकर प्यारी सी परी को उसमे पुर्णतः मग्न हो गया,
और ये भूल गया की परियों को पंख भी होतें हैं l "

मेरा दर्द...................

"दर्द ही दर्द है दिल में, दर्द से ही हम बने है,
दर्द बाकि ना रहे कोई, दर्द की चाह हममें है,
दर्द ही दर्द है .....................
दर्द गैरों ने दिया, दर्द अपनों ने दिया,
दर्द अरमानों ने दिया, दर्द सपनों ने दिया,
इस दर्द में कितना मज़ा है, दर्द हम पीते है,
दर्द बाकि ना रहा.....
दर्द हमारे है, ये दर्द तुम्हारे है,
इन दर्दों में फर्क सारे है,
इस दर्द में कितना दर्द है, दर्द हम जीते है,
दर्द बाकि न रहे कोई.....
दर्द से बनता है, इक दर्द का रिश्ता,
कितना गहरा होता है, ये सर्द सा रिश्ता,
मुझे दर्द की ज़रूरत है, मैं दर्द ही माँगता हूँ,
दर्द बाकि न रहे कोई, दर्द की चाह हममें है ll
दर्द ही दर्द है दिल में........................."

खंड खंड में

"कितना तन्हा तन्हा आज मैं महसूस करता हूँ,
गम के अँधेरे साये में जीने की कोशिश करता हूँ,
किसी के संग था मैं इन अँधेरी राहों में,
बिछड़ गया वो हमसफ़र आज मुझसे,
उस हमदम को तलाशने की कोशिश करता हूँ,
कितना तन्हा तन्हा आज मैं महसूस करता हूँ ll"
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"आपकी मुस्कराहट में लुटा है हमें, की हम मुस्कुराना भूल गए,
आपकी यादों ने सताया है हमे, की हम रातों में सोना भूल गए,
जाने क्या क्या भूलेंगे हम आपके बाद, जबसे आप हमे भूल गए ll"
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"ख़ुशी की चाह में निकले तो मिले गम हमें,
ख़ुशी बाँटते रहे फिर भी मिले गम हमें,
इतने गम मिले की लगने लगे कम हमें,
आपने अपना गम न दिया ये न रहे गम हमें,
अगर आप न मुस्कुराये तो रहेगा ताउम्र ये गम हमें ll ....."
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कुछ अनकही सी बातें अनजाने में इन निगाहों ने कह दिया,
फजाओं में जलने को परवाने से अनजाने में शमा ने कह दिया,
हम आपको याद ना करे, रब से फरियाद ना करे की,
आप हमारे ख्वाबों में आयें, ये आप से किसने कह दिया ll
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Gloomy day

Gloomy day,
It's a gloomy day,
for me,
a gloomy day,
gloomy day a gloomy day,
when i used to love everyone,
when i used to like everyone,
I wanted someone loves me,
but no'one wants me,
but no one loves me,
Glooooomy day iiiiiiiiii
For me................
a gloomy day,
Gloomy day a gloomy day,
gloomy day wanna kill me,
gloomy day wanna haunt me,
It's gloomy day.............
Foooooooor me........
a black day,
a painfull for me...
gloomy day...
wanna just take my life..
my tears like fire for me,
Cuzzzzzzz.....
It's a gloomy day..,
A painful glooomy day,
For meeeeeeeeeeeeee....

क्या ख़ुशी .......

क्या ख़ुशी क्या हंसी,
एक धुआं है जिन्दगी,
तुम नहीं पास मेरे,
जीने का कोई आसरा नहीं...
क्या ख़ुशी .......
महफ़िल में तन्हाई,
दिल में है गम,
आँख में आंसू नहीं,
क्या ख़ुशी.........
याद तुम्हारी आई,
दूर हो तुम किसे देखे,
पास कोई तस्वीर नहीं,
क्या ख़ुशी......
राह में अकेले चलते है,
अपनी मंजिल तलाशने को,
साथ अपने कोई साथी नहीं,
क्या ख़ुशी क्या हंसी......
एक धुआं है जिन्दगी ...........

एक दास्ताँ शमां और परवाने की चाहतों की

शमां ने पूछा परवाने से तू क्यूँ जल रहा है,
परवाना बोला जादू ये तेरे इश्क का है,
शमा बोली ग़लतफ़हमी है, तेरे लिए नहीं है प्यार मेरा,
उदास परवाने ने पूछा, बताओ भला कौन है प्यार तेरा,
शमा बोली जलाना मेरी फितरत और अदा है,
जलना परवाने तेरे लिए मज़बूरी और सजा है,
खता तेरी नहीं परवाने ये मेरे रूप का असर है,
तू अकेला नहीं है मेरे आशिकों में,
देख तेरे पीछे जान देने को इक भीड़ खडी है,
उदास परवाने ने कहा, सच्चा प्यार बेवफा का इल्जाम नहीं देता,
तभी तो मरकर भी वो अपने सच्चे प्यार का एहसास नहीं देता"
..."देखती रह गयी शमां परवाने को मरते हुए,
पर चाह कर भी उसकी आँखों से आंसू न निकले"....

कन्हईया......तोहरी मईया

कन्हईया रोवत होवेगी दुआरे तोहरी मईया,
कन्हईया रोवत.....................
नयन द्वय अश्रुं के दर बने होंगे,
अचरा में अश्रुं बटोरत होवेगी तोहरी मईया,
कन्हईया रोवत.....................
सुने लागत होंगे बाग़ सारे, कोयलिया भी न होगी,
अंगना में.. नीर बहावत होवेगी तोहरी गईया,
कन्हईया रोवत......................
अब न हिलोर मारेगी जमुना मईया,
कईसे पुकारेगी तोहे कदम्ब की छईया,
कन्हईया रोवत.....................
प्रेम अभागन राधा रानी, प्रेम बैरागन मीरा दीवानी,
राह तकत होवेगी फैलाकर अपनी बईयाँ,
कन्हईया रोवत.....................
गोकुल छुट गयो, दर से दूर भयो,
कईसे लेगी मईया तोहरी बलईया,
कन्हईया रोवत होवेगी दुआरे तोहरी मईया,

खंड खंड में

"रुकसत किया अपने कूंचे से यूँ,
रुकसत हुए उनके कूंचे से यूँ,
कल भी हम कांधों पर थे,
आज भी हम कांधों पर है,
कल सब हँसते हम रोते थे,
आज हम हंस रहे, सब रोते क्यूँ,
बिलखती अम्मा अंखिया बापू की नम क्यूँ,
रोते तो कल भी सारे,आंसुओं में आज इतनी नमी क्यूँ,
रुकसत हो रहे उनकी गलियों से, कोई गिला नही,
दर्दे जिगर दिया गर, खता हुई सजा और भी मिले ll"
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"तोड़ो ना इतना हमें,
हम प्यार करने लगे,
देखों ना इस कदर हमें,
हम ऐतबार करने लगे,
रुकसत करो मुस्कां संग
अश्कों संग ना,
कही तेरे कंगन पैरों की,
बेडियाँ ना बन जाए,
याद करो, याद इस तलक करो,
की हमारी लाश ना कहीं आए,
भरोसा है गर, भरोसा है,
हम पर, वादा रहा,
ना लौट सकें गर, लौटें तो कांधों पर आयें ll"
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"तेरी आँखों से छलकता प्यार खौफनाक एहसास देता है,
प्यार तेरे प्यार अन्दर तक डरा देता है,
समंदर की गहराइयों का खौफ नही है मुझे,
तेरे आँखों का सागर हमको डूबा देता है,
स्याह शब् की खामोशी खौफ नही देती,
तेरे साथ तन्हाई रूह को डरा देती है,
तेरी आँखों से छलकता प्यार खौफनाक एहसास देता है..............
निगाहें जब टकराई तेरी निगाहों से,
कोई एहसास दिल में ना जगी,
तेरी आँखों से छलकता इतना प्यार देख,
कयामत तलक रूह मेरी काँप गई ll"

कागज़ की कश्ती

"कागज़ की कश्ती बन बह जाए जिंदगी,
गम के सागर में तूफां कभी आतें नही,
साहिल पर बैठी सोच रही है जिंदगी,
गम के सागर में क्या खुशी मिलती नही,
कागज़ की कश्ती.......
गेसुओं के रंगों में छिपती सांझ की दुल्हन,
खिलते चेहरों के आँखों का ये सूनापन,
तस्वीरों के रंगों से छलकता ये अधूरापन,
हमको किस मोड़ पर लायी ये आवारगी,
कागज़ की कश्ती.......
सपने देखती उजडे बागों की कलियाँ,
पतझड़ बाद पत्तियों में आई ये शोखियाँ,
बसंत के इंतज़ार में बैठी कोयल की तन्हाईयाँ,
देख कर सोंचती है खुदाई ये खुदा की,
गम के सागर में................
अटखेलियाँ करती लहरें वो सागर की,
लहरों से दूर उछलते घर वो मोतियों के,
आशियाना उजाड़ जाता है जिनका जहां में,
किस्मत भी हर किसी के साथ करती है ये दिल्लगी,
साहिल पर बैठी.............
गम के सागर में तूफां कभी आतें नही,
कागज़ की कश्ती बन बह जाए जिंदगी ll"

चंद लम्हें

"चंद लम्हों में मिलती नही यहाँ किसी को खुशियाँ
चंद लम्हों में छीन जाती है किसी से यहाँ दुनिया,
चंद लम्हों का ये खेल भी अज़ब होता है,
चंद लम्हों में कोई पता कोई खोता है,
चंद लम्हों में मिलती .........
चंद लम्हों में रांझा बिछडा हीर से,
चंद लम्हों में मजनूँ हारा तकदीर से,
चंद लम्हों में फ़रहाद की जाँ छीन गई,
चंद लम्हों में रोमियों की साँस थम गई,
चंद लम्हों का ये खेल..........
चंद लम्हों में ही हम क्या से क्या हुए,
चंद लम्हों में ही हम बेवफा हुए,
चंद लम्हों में ही छीन गई हमसे खुशियाँ,
चंद लम्हों में ही लुट गयी हमारी दुनिया,
चंद लम्हों में ही हम उनसे जुदा हुए,
चंद लम्हों का ये खेल .......
चंद लम्हों में ही हमें हुस्न के जलवे मिले,
चंद लम्हों में ही हमें मौत के फतवे मिले,
चंद लम्हों में मिली खुशी जिन्दगी बनाती है,
चंद लम्हों में ही किसी को तन्हा कर जाती है,
चंद लम्हों में मिली मरने की खुशी,
चंद लम्हों में जीने की आस धूमिल हुई,
चंद लम्हों का ये खेल .............
चंद लम्हों में कोई ........
चंद लम्हों में मिलती नही यहाँ किसी को खुशियाँ II"