गुरुवार, 3 सितंबर 2009

कभी फुर्सत मिले

कभी फुर्सत मिले तो सोचना वो कौन था,
देकर तुम्हे जहां जाने कहाँ गया,
कभी फुर्सत मिले तो सोचना
तेरे आंसू जिसे चुभते थे नश्तर की तरह,
कभी पल मिले तो सोचना...
तेरी इक आहट उसकी चैन बन जाती थी,
कभी फुर्सत मिले तो सोचना..
बन के तेरा हमनवां रहता था तेरे आस पास.
कभी फुर्सत मिले तो सोचना,
क्या था वो,
जो बन कर दोस्त तुम्हारा, न बन सका जो,
कभी फुर्सत मिले तो सोचना,
कौन था वो,
जो साया बना तुम्हारा, न बन सका जो,
कभी फुर्सत मिले तो सोचना,
कैसा था वो,
जो तुम्हे याद कर के भी, न बस सका याद जो,
कभी फुर्सत मिले तो सोचना,
क्या चाहता था वो,
जो तेरा इंतजार करता, तेरे रस्ते पे, न बन सका तेरा जो,
कभी फुर्सत मिले तो सोचना.........

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