शुक्रवार, 15 अगस्त 2014

1947-एक दर्द....

मैं नही था वहाँ,
मैं दर्शक भी नही ना श्रोता ही था,
जब प्लेटफार्म पर माँ, बहन और,
अपने बिछडों को ढूंढता,
रोता फिर रहा था वो,
हर तरफ रक्त,
छिन्न भिन्न अंग,
शिथिल पड़े मांस के लोथड़े,
चीख और पुकार,
अंधेरों में टटोलता अपना संसार,
मैं नही था वहाँ,
जब रोता फिर रहा था वो,
फफक, सिसक रहा था वो,
इतना तो बिलबिलाया तो गोद में भी ना था,
जितना वो भूख दे रही है दर्द,
इतना डरा पहले कभी ना था वो,
जितना अँधेरे में रक्त पिपासु श्वान बने है वजह,
कैसी दुर्गन्ध है फिज़ा में,
ऐसी दुर्गन्ध खेत जले तो भी ना थे..
कहाँ जाएगा,
क्या रक्त से प्यास बुझाएगा,
कैसे ज़ख्म भर पायेगा,
कैसे पिंड की याद बिसरायेगा,
अब कौन उसे रोटी खिलायेगा,
छाछ और दही की खुश्बू वो कहाँ से पायेगा...
....मैं नही था वहाँ,
क्यूँ नही था वहाँ,
पर ज़ख्म अब भी भरे नही है,
मैं दर्शक भी नही ना श्रोता ही था,
मैं क्यूँ नही था..............

एक अरसा गुजर गया..........

कुल दो बरस ही तो गुजरे है,
पर लगता है,
की एक अरसा गुजर गया,
तेरी छुअन का एहसास अब तक महक रहा है,
कल तेरी तस्वीर देखी,
अनजाने में ही दर्द के दरिया में,
डूबने उभरने लगे हम,
नही मालूम तेरे सफर के बारे में,
तू कितना बदल गया है,
ये भी एहसास नही है मुझे,
पर मेरा सफर तो बस तुझसे ही था,
मेरा भ्रम, संयम, खुशी और गम,
सब कुछ तुझसे ही तो था,
रूबरू होने के मौके नही है,
मेरे पास अब,
तेरी तस्वीर ही है अब,
तेरा पता नही है,
किस शहर, किस गली में,
जाने कौन से डगर,
कहाँ खोजूँ तुझे,
किससे पूछूँ पता तेरा,
कोई तुझे वैरागन,
कोई जोगन,
कोई तुझे मीरा कहता है,
फकीरों की टोली में,
या मंदिरों में देखता है,
मुझे पता है तेरी तलाश क्या है,
पर तू तो मेरी तलाश है,
की एक अरसा गुजर गया,
तू देव को आज भी याद है................

मंगलवार, 5 अगस्त 2014

वो जबाब-हर बार अनेक बार

जिंदगी में कुछ ऐसे भी पल आते है,
जब अपने ही हमसे दूर हो जाते है,
पास में उनकी यादें भी नही होती,
और वो लौटकर यादों में भी नही आते है।।
"ये यादें भी अजीब होती है ना, जब आती है तो आंधी तूफ़ान बन कर और एक झटके में ही आपको कितना पीछे धकेल देती है।
आप सोचते है मैं क्या था और क्यूँ था मैंने यें क्यूँ किया आखिर क्या हो गया था मुझे की मैंने ये गलती की?
हर किसी की जिंदगी में ऐसा मोड़ आता है जब वो कुछ पाने की चाह में जुनून की हद तक चला जाता है।
जुनून........एक ऐसा शब्द जिसे सुनने में ही आपके अन्दर ऊर्जा का संचार होने लगता है। उसके इसके हर किसी के अन्दर होता है ऐसा।
उसे भी कुछ महसूस हो रहा था जिसे वो समझने की कोशिश कर रहा था। वो....आखिर कौन था जिसे वो का संबोधन दे रहे है, कोई तो आकार होगा कोई तो स्वरूप होगा?
वो....हमारे आपके भीतर शामिल एक अजीब सी ऊर्जा है जो हमारे भीतर याद का संचार करती है।
कुछ ऐसी ही अनकही सी बातें है जो कभी कभी हम आप सोचते है वो सोच का समाधान, उस सोच को रूप देना आवश्यक है।।