गुरुवार, 3 सितंबर 2009

मैं नारी हूँ.

सदियों से सताई गई, जलाई गई, अग्नि परीक्षा देती,
मैं शकुन्तला, मैं सती, मैं ही सीता हूँ,
मैं नारी हूँ...
मैं जगत जननी हूँ, मैं विनाशनी हूँ,
मैं अर्धनारीश्वर की सहभागिनी हूँ,
मैं नारी हूँ....
अहिल्या की पवित्रता मैं, उमराव की पतिता मैं,
गंगा की निर्मल धारा मैं, काली की ज्वाला मैं ही हूँ,
मैं नारी हूँ......
पुरुष के ह्रदय का वात्सल्य मैं, पुरुष का अहम् मैं,
पुरुष के पुरुषत्व की पहचान मैं ही हूँ,
मैं नारी हूँ...
ब्रह्म की दुलारी मैं, विष्णु की प्यारी मैं,
परम शिव की अखंड शक्ति मैं ही हूँ,
मैं नारी हूँ...
माँ की ममता मैं, रिश्तों का अपनत्व मैं,
एक प्रेमी का प्रेम मैं ही हूँ,
मैं नारी हूँ...
सतयुग की शकुन्तला मैं, त्रेता की सीता मैं,
द्वापर की द्रौपदी मैं, कलयुग की कल्पना मैं ही हूँ,
मैं नारी हूँ....
सौन्दर्य की देवी मैं, प्रेम का प्रतीक मैं,
ज्ञान का अकूत भण्डार मैं, सर्व ह्रदय में बसी स्नेह मैं ही हूँ,
मैं नारी हूँ...
प्रेम में डूबी वैरागन मीरा मैं, विरह में तड़पती अभागन राधा मैं,
पंच वीरों की वीरता की पहचान पांचाली मैं ही हूँ,
मैं नारी हूँ...
मंदिरों में पूजी जाती देवी मैं, पैरों की ठोकर खाती दासी मैं,
सर्वत्र व्याप्त इस सृष्टि की अद्भुत सृजन मैं ही हूँ,
मैं नारी हूँ...
बीत गये जमाने, वो पल, गुजर गया इतिहास,
मैं रजिया सुल्ताना, मैं झांसी की रानी,
कवियों की कल्पना मैं ही हूँ,
मैं नारी हूँ......

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