सोमवार, 7 सितंबर 2009

आँसू की बूंदे

पग पग पर बिखरी आँसू की बूंदे,
तेजाब बन जलायेगी हमें,
गर अनदेखा किया इन्हें,
कही सुकून ना लेने देंगी हमें,
उन्मुक्त वातावरण की बुलबुल,
ना गा सकेगी कैद में,
फिर कहाँ सुमधुर संगीत सुनाएगी हमें,
पग पग पर बिखरी.....
अकेलेपन का अहसास दिलायेंगी हमे,
जहन्नुम की ज्वाला बन जलायेगी हमें,
हरियाली बिन उजाड़ उपवन,
नारी बिन सूना है ये जग,
जब वो ना रहेंगे इस दुनिया में,
पग पग पर बिखरी.....
इक स्मृति बन रुलायेंगी हमें,
तेजाब बन जलायेगी हमें,
पग पग पर बिखरी.....

कोई टिप्पणी नहीं: