शनिवार, 20 जून 2009

कागज़ की कश्ती

"कागज़ की कश्ती बन बह जाए जिंदगी,
गम के सागर में तूफां कभी आतें नही,
साहिल पर बैठी सोच रही है जिंदगी,
गम के सागर में क्या खुशी मिलती नही,
कागज़ की कश्ती.......
गेसुओं के रंगों में छिपती सांझ की दुल्हन,
खिलते चेहरों के आँखों का ये सूनापन,
तस्वीरों के रंगों से छलकता ये अधूरापन,
हमको किस मोड़ पर लायी ये आवारगी,
कागज़ की कश्ती.......
सपने देखती उजडे बागों की कलियाँ,
पतझड़ बाद पत्तियों में आई ये शोखियाँ,
बसंत के इंतज़ार में बैठी कोयल की तन्हाईयाँ,
देख कर सोंचती है खुदाई ये खुदा की,
गम के सागर में................
अटखेलियाँ करती लहरें वो सागर की,
लहरों से दूर उछलते घर वो मोतियों के,
आशियाना उजाड़ जाता है जिनका जहां में,
किस्मत भी हर किसी के साथ करती है ये दिल्लगी,
साहिल पर बैठी.............
गम के सागर में तूफां कभी आतें नही,
कागज़ की कश्ती बन बह जाए जिंदगी ll"

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