शुक्रवार, 15 अगस्त 2014

1947-एक दर्द....

मैं नही था वहाँ,
मैं दर्शक भी नही ना श्रोता ही था,
जब प्लेटफार्म पर माँ, बहन और,
अपने बिछडों को ढूंढता,
रोता फिर रहा था वो,
हर तरफ रक्त,
छिन्न भिन्न अंग,
शिथिल पड़े मांस के लोथड़े,
चीख और पुकार,
अंधेरों में टटोलता अपना संसार,
मैं नही था वहाँ,
जब रोता फिर रहा था वो,
फफक, सिसक रहा था वो,
इतना तो बिलबिलाया तो गोद में भी ना था,
जितना वो भूख दे रही है दर्द,
इतना डरा पहले कभी ना था वो,
जितना अँधेरे में रक्त पिपासु श्वान बने है वजह,
कैसी दुर्गन्ध है फिज़ा में,
ऐसी दुर्गन्ध खेत जले तो भी ना थे..
कहाँ जाएगा,
क्या रक्त से प्यास बुझाएगा,
कैसे ज़ख्म भर पायेगा,
कैसे पिंड की याद बिसरायेगा,
अब कौन उसे रोटी खिलायेगा,
छाछ और दही की खुश्बू वो कहाँ से पायेगा...
....मैं नही था वहाँ,
क्यूँ नही था वहाँ,
पर ज़ख्म अब भी भरे नही है,
मैं दर्शक भी नही ना श्रोता ही था,
मैं क्यूँ नही था..............

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